February 17, 2011

भारत: एलोपेथी का इलाज, मौत का व्यापार

[आपने एक नाम सुना होगा M.R. यानि मेडिकल Represetative | ये नाम अभी हाल ही में कुछ वर्षो में ही अस्तित्व में आया है| ये MR नाम का बड़ा विचित्र प्राणी है |  ये कई तरह की दवा कम्पनियों की दवाएं डॉक्टर के पास ले जाते है और इन दवाओं को बिकवाते है | ये दवा कंपनिया 40/40% तक कमिसन डॉक्टर को सीधे तौर पर देती है | जो बड़े बड़े शहरों में दवा कंपनिया है नकद में डॉक्टर को कमिसन देती है | ऑपरेशन करते है तो उसमे कमिसन खाते है, एक्सरे में कमिसन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है डॉक्टर , उमने कमिसन | सबमे इनका कमिसन फिक्स रहता है | जिन बिमारियों में जांचों की कोई जरुरत ही नहीं होती उनमे भी डॉक्टर जाँच करवाने के लिए लिख देते है ये जाँच कराओ वो जाँच करो आदि आदि | कई बीमारियाँ ऐसी है जिसमे दवाएं जिंदगी भर खिलाई जाती है | जैसे हाई ब्लड प्रेसर या लो ब्लड प्रेस्सर, daibities आदि | यानी जब तक दवा खाओगे आपकी धड़कन चलेगी | दवाएं बंद तो धड़कन बंद | जितने भी डॉक्टर है उनमे से 99 % डॉक्टर कमिसंखोर  है | केवल 1 % इमानदार डॉक्टर है जो सही मायने में मरीजो का सही इलाज करते है |]

मौत का व्यापार....... एलोपेथी .............
प्रेषक: प्रकृति आरोग्य केंद्र

हमारे भारत में एक मंत्रालय हुवा करता है जो परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य मंत्रालय कहलाता है| हमारी भारत सरकार प्रति वर्ष करीब  23700 करोड़ रुपये लोगों के स्वस्थ्य पर खर्च करती है  | फिर भी हमारे देश में ये बीमारियाँ बढ़ रही है | आइये कुछ आंकड़ों पर नजर डालते है -

01 आबादी (जनसँख्या) -  भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि सन 1951 में भारत की आबादी करीब 33 करोड़ थी  जो सन 2010 तक 118 करोड़ हो गई |
02 सन 1951 में पूरे भारत में 4780 डॉक्टर थे, जो सन 2010 तक बढ़कर करीब 18,00,000 (18 लाख) हो गए |
03 सन 1947 में भारत में एलोपेथी दवा बनाने वाली कम्पनियाँ करीब 10-12 कंपनिया हुवा करती थी जो आज बढ़कर करीब 20 हजार हो गई है |
04 सन 1951 में पूरे भारत में करीब 70 प्रकार की दवाइयां बिका करती थी और आज ये दवाइयां बढ़कर करीब 84000 (84 हजार) हो गई है |
05 सन 1951 में भारत में बीमार लोगों की संख्या करीब 5 करोड़ थी आज बीमार लोगों की तादाद करीब 100 करोड़ हो गई है |

हमारी भारत सरकार ने पिछले 64  सालों में अस्पताल पर, दवाओ पर, डॉक्टर और नर्सों पर,  ट्रेनिंग वगेराह वगेरह में सरकार ने जितना खर्च किया उसका 5 गुना यानी करीब 50 लाख करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है| आम जनता ने जो अपने इलाज के लिए पैसे खर्च किये वो अलग है | आम जनता का लगभग 50 लाख करोड़ रूपया बर्बाद हुवा है पिछले 64 सालों में इलाज के नाम पर, बिमारियों के नाम पर | 

इतना सारा पैसा खर्च करने के बाद भी भारत में रोग और बीमारियाँ बढ़ी है | 

01) हमारे देश में आज करीब 5 करोड़ 70 लाख लोग dibities (मधुमेह) के मरीज है | (भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि करीब 3 करोड़ लोगों को diabities होने वाली है |
02) हमारे देश में आज करीब 4 करोड़ 80 लाख लोग ह्रदय रोग की विभिन्न रोगों से ग्रसित है |
03) करीब 8 करोड़ लोग केंसर के मरीज है | भारत सरकार कहती है की 25 लाख लोग हर साल केंसर के कारण मरते है |
04) 12 करोड़ लोगों को आँखों की विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ  है |
05) 14 करोड़ लोगों को छाती की बीमारियाँ है |
06) 14 करोड़ लोग गठिया रोग से पीड़ित है |
07) 20 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure ) और निम्न रक्तचाप (Low Blood Pressure ) से पीड़ित है |
08) 27 करोड़ लोगों को हर समय 12 महीने सर्दी, खांसी, झुकाम, कोलेरा, हेजा आदि सामान्य बीमारियाँ लगी ही रहती है |
09) 30 करोड़ भारतीय महिलाएं अनीमिया की शिकार है | एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी | महिलाओं में खून की कमी से पैदा होने वाले करीब 56 लाख बच्चे जन्म लेने के पहले साल में ही मर जाते है | यानी पैदा होने के एक साल के अन्दर-अन्दर उनकी मृत्यु हो जाती है |  क्यों कि खून की कमी के कारण महिलाओं में दूध प्रयाप्त मात्र में नहीं बन पाता|  प्रति वर्ष 70 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार होते है | कुपोषण के मायने उनमे खून की कमी, फास्फोरस की कमी, प्रोटीन की कमी, वसा की कमी वगेरह वगेरह .......

ऊपर बताये गए सारे आंकड़ों से एक बात साफ़ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज कारगर नहीं हुवा है | एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है| इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है |  यानी हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की बीमारियाँ सामने आने लगी है | 

पहले मलेरिया हुवा करता था | मलेरिया को ठीक करने के लिए हमने जिन दवाओ का इस्तेमाल किया उनसे डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने क्या क्या नई नई तरह की बुखारे बिमारियों के रूप में  पैदा हो गई है | किसी ज़माने में सरकार दावा करती थी की हमने चिकंपोक्ष (छोटी माता और बड़ी माता) और टी बी जैसी घातक बिमारियों पर विजय प्राप्त कर ली है लेकिन हाल ही में ये बीमारियाँ फिर से अस्तित्व में आ गई है, फिर से लौट आई है|  यानी एलोपेथी दवाओं ने बीमारियाँ कम नहीं की और ज्यादा बधाई है |

एक खास बात आपको बतानी है की ये अलोपेथी दवाइयां पहले पूरे संसार में चलती थी जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, फ़्रांस, आदि | हमारे देश में ये एलोपेथी इलाज अंग्रेज लाये थे | हम लोगों पर जबरदस्ती अंग्रेजो द्वारा ये इलाज थोपा गया | द्वितीय विश्व युद्ध जब हुवा था तक रसायनों का इस्तेमाल घोला बारूद बनाने में और रासायनिक हथियार बनाने में  हुवा करता था |  जब द्वितीय विश्वयुध  में जापान पर परमाणु बम गिराया गया तो उसके दुष्प्रभाव को देख कर विश्व के कई प्रमुख देशों में रासायनिक हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ को बंद करवा दी गई| बंद होने के कगार पर खड़ी इन कंपनियों ने देखा की अब तो युद्ध खत्म हो गया है | अब इनके हथियार कौन खरीदेगा | तो इनको किसी बाज़ार की तलाश थी | उस समय सन 1947 में भारत को नई नई आजादी मिली थी और नई नई सरकार बनी थी| यहाँ उनको मौका मिल गया| और आप जानते है की हमारे देश को आजाद हुवे एक साल ही गुजरा था की भारत का सबसे पहला घोटाला सन 1948 में हुवा था सेना की लिए जीपे खरीदी जानी थी | उस समय घोटाला हुवा था 80 लाख का | यांनी धीरे धीरे ये दावा कम्पनियां भारत में व्यापार बढाने लगी और इनके व्यापार को बढ़ावा दिया हमारी सरकारों ने|  ऐसा इसलिए हुवा क्यों की हमारे नेताओं  को इन दावा कंपनियों ने खरीद लिया| हमारे नेता लालच में आ गए और अपना व्यापार धड़ल्ले से शुरू करवा दिया |  इसी के चलते जहाँ हमारे देश में सन 1951 में 10 -12 दवा कंपनिया हुवा करती थी वो आज बढ़कर 20000 से ज्यादा हो गई है | 1951 में जहाँ लगभग 70 कुल दवाइयां हुवा करती थी आज की तारिख में ये 84000 से भी ज्यादा है | फिर भी रोग कम नहीं हो रहे है, बिमारियों से पीछा नहीं छूट रहा है | 

आखिर सवाल खड़ा होता है कि इतनी सारे जतन करने के बाद भी बीमारियाँ कम क्यों नहीं हो रही है | इसकी गहराई में जाए तो हमे पता लगेगा कि मानव के द्वारा निर्मित ये दवाए किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त नहीं करती बल्कि उसे कुछ समय के लिए रोके रखती है| जब तक दवा का असर रहता है तब तक ठीक, दवा का असर खत्म हुवा बीमारियाँ फिर से हावी हो जाती है | दूसरी बात इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट बहुत ज्यादा है | यानी एक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा खाओ तो एक दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है |  आपको कुछ उदहारण दे के समझाता हु -

01) Entipiratic  बुखार को ठीक करने के लिए हम एन्तिपैरेतिक दवाएं खाते है जैसे - पेरासिटामोल, आदि | बुखार की ऐसी सेकड़ो दवाएं बाजार में बिकती है | ये एन्तिपिरेटिक दवाएं हमारे गुर्दे ख़राब करती है | गुर्दा ख़राब होने का सीधा मतलब है की पेसाब से सम्बंधित कई बीमारियाँ पैदा होना जैसे पथरी, मधुमेह, और न जाने क्या क्या| एक गुर्दा खराब होता है उसके बदले में नया गुर्दा लगाया जाता है तो ऑपरेशन का खर्चा करीब 3.50 लाख रुपये का होता है | 


02 ) Antidirial  इसी तरह से हम लोग दस्त की बीमारी में Antidirial दवाए खाते है | ये एन्तिदिरल दवाएं हमारी आँतों में घाव करती है जिससे केंसर, अल्सर, आदि भयंकर बीमारियाँ पैदा होती है |


03 ) Enaljesic इसी तरह हमें सरदर्द होता है तो हम एनाल्जेसिक दवाए खाते है जैसे एस्प्रिन , डिस्प्रिन , कोल्द्रिन और भी सेकड़ों दवाए है |  ये एनाल्जेसिक दवाए हमारे खून को पतला करती है | आप जानते है की खून पतला हो जाये तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कोई भी बीमारी आसानी से हमारे ऊपर हमला बोल सकती है |


आप आये दिन अखबारों में या टी वी पर सुना होगा की किसी का एक्सिडेंट हो जाता है तो उसे अस्पताल ले जाते ले जाते रस्ते में ही उसकी मौत हो जाती है | समज में नहीं आता कि अस्पताल ले जाते ले जाते मौत कैसे हो जाती है ? होता क्या है कि जब एक्सिडेंट होता है तो जरा सी चोट से ही खून शरीर से बहार आने लगता है और क्यों की खून पतला हो जाता है तो खून का थक्का नहीं बनता जिससे खून का बहाव रुकता नहीं है और खून की कमी लगातार होती जाती है और कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है |


पिछले करीब 30 से 40 सालों में कई सारे देश है जहाँ पे ऊपर बताई गई लगभग सारी दवाएं बंद हो चुकी है | जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, और भी कई देश में जहा ये दवाए न तो बनती और न ही बिकती है| लेकिन हमारे देश में ऐसी दवाएं धड़ल्ले से बन रही है, बिक रही है|  इन 84000 दवाओं में अधिकतर तो ऐसी है जिनकी हमारे शरीर को जरुरत ही नहीं है | आपने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO का नाम सुना होगा| ये दुनिया कि सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था है | WHO कहता है कि भारत में ज्यादा से ज्यादा  केवल 350 दवाओं की आवश्यकता है | अधितम केवल 350 दवाओं की जरुरत है, और हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं | यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे खिलते है क्यों कि जितनी ज्यादा दवाए बिकेगी डॉक्टर का कमिसन उतना ही बढेगा |
फिर भी डॉक्टर इस तरह की दवाए खिलते है | मजेदार बात ये है की डॉक्टर कभी भी इन दवाओं का इस्तेमाल नहीं करता और न अपने बच्चो को खिलाता है| ये सारी दवाएं तो आप जैसे और हम जैसे लोगों को खली जाती है | वो ऐसा इसलिए करते है क्यों कि उनको इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट पता होता है | और कोई भी डॉक्टर इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट के बारे में कभी किसी मरीज को नहीं बताता| अगर भूल से पूछ बैठो तो डॉक्टर कहता है कि तुम ज्यादा जानते हो या में? 

दूसरी और चोकने वाली बात ये है कि  ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमिसन देती है डॉक्टर को| यानी डॉक्टर कमिशनखोर हो गए है या यूँ कहे की डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है तो गलत ना होगा | 


आपने एक नाम सुना होगा M.R. यानि मेडिकल Represetative | ये नाम अभी हाल ही में कुछ वर्षो में ही अस्तित्व में आया है| ये MR नाम का बड़ा विचित्र प्राणी है |  ये कई तरह की दवा कम्पनियों की दवाएं डॉक्टर के पास ले जाते है और इन दवाओं को बिकवाते है | ये दवा कंपनिया 40/40% तक कमिसन डॉक्टर को सीधे तौर पर देती है | जो बड़े बड़े शहरों में दवा कंपनिया है नकद में डॉक्टर को कमिसन देती है | ऑपरेशन करते है तो उसमे कमिसन खाते है, एक्सरे में कमिसन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है डॉक्टर , उमने कमिसन | सबमे इनका कमिसन फिक्स रहता है | जिन बिमारियों में जांचों की कोई जरुरत ही नहीं होती उनमे भी डॉक्टर जाँच करवाने के लिए लिख देते है ये जाँच कराओ वो जाँच करो आदि आदि | कई बीमारियाँ ऐसी है जिसमे दवाएं जिंदगी भर खिलाई जाती है | जैसे हाई ब्लड प्रेसर या लो ब्लड प्रेस्सर, daibities आदि | यानी जब तक दवा खाओगे आपकी धड़कन चलेगी | दवाएं बंद तो धड़कन बंद | जितने भी डॉक्टर है उनमे से 99 % डॉक्टर कमिसंखोर  है | केवल 1 % इमानदार डॉक्टर है जो सही मायने में मरीजो का सही इलाज करते है |

सारांस के रूप में हम कहे की मौत का खुला व्यापार धड़ल्ले से पूरे भारत में चल रहा है तो कोई गलत नहीं होगा|
पूरी दुनिया में केवल २ देश है जहाँ आयुर्वेदिक दवाएं भरपूर मात्र में मिलती है (1) भारत (2) चीन